पà¥à¤°à¤¥à¤® आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि और उसके पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• लोग’
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Manmohan Kumar AryaDate
06-Apr-2016Language
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UmeshUpload Date
19-Apr-2016Download PDF
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हमें à¤à¤• आरà¥à¤¯à¤¬à¤¨à¥à¤§à¥ ने पूछा है कि आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी को सà¥à¤à¤¾à¤µ किन आरà¥à¤¯-शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ियों ने दिया था? हम सब यह तो जानते हैं कि आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ सनॠ1875 में की थी परनà¥à¤¤à¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि और इसकी यथारà¥à¤¥ तिथि से सà¤à¥€ लोग पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ परिचित नहीं है। आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की तिथि विषयक à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मत à¤à¥€ हैं। अतः हमने जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ बनà¥à¤§à¥ शà¥à¤°à¥€ राज आरà¥à¤¯ चैहान को à¤à¤• लेख दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इसका विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ उतà¥à¤¤à¤° देने का विचार किया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इससे अवगत करा दिया। महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ जी ने मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ की तीन बार यातà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ की। पà¥à¤°à¤¥à¤® बार वह सोमवार 24 अकà¥à¤¤à¥‚बर, सनॠ1874 से 30 नवमà¥à¤¬à¤°, सनॠ1874 तक यहां रहे, दूसरी बार बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤° 29 जनवरी सनॠ1875 से बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° अनà¥à¤¤à¤¿à¤® जून सऩ 1875 तक और तीसरी बार बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° 1 सितमà¥à¤¬à¤° सनॠ1875 से अपà¥à¤°à¥ˆà¤², 1876 तक रहे। पहली बार की यातà¥à¤°à¤¾ में आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने का विचार मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ के निवासियों में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ इस शीरà¥à¤·à¤• से महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– जीवनीकार पं. लेखराम जी ने जीवन चरित में लिखा है कि ‘सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के चले जाने पर (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ 30 नवमà¥à¤¬à¤°, सनॠ1874 के बाद) फिर इस उतà¥à¤¤à¤® धरà¥à¤®à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¯ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सतà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ का चलाना कठिन होगा इसलिठà¤à¤• ‘आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ’ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होना चाहिà¤, इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का विचार कई-à¤à¤• धरà¥à¤®à¤œà¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ गृहसà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के मन में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤’ इसके बाद ‘कà¥à¤› सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ ढोंगी à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस विचार का विरोध’ शीरà¥à¤·à¤• देकर पं. लेखराम जी लिखते हैं कि ‘इस विचार को सà¥à¤¨à¤•à¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी को यहां (बमà¥à¤¬à¤ˆ) बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ में जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अधिक à¤à¤¾à¤— लिया था, वे लोग कà¥à¥à¤°à¤¦à¥à¤§ हो गà¤, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उन लोगों का यह हेतॠथा कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किसी विशेष मत का खंडन करवाकर, उस मत के बहà¥à¤¤ से अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अपनी ओर करके, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के जाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ उन लोगों को अपना शिषà¥à¤¯ बना कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कथा-शà¥à¤°à¤µà¤£ करने के लिठआने का उपदेश किया जाये। (ये पौराणिक पंडित लोग नवीन वेदानà¥à¤¤à¥€ थे)। वैसे ही जो लोग वेद को नहीं मानते थे और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के सहायक थे (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥€ और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾-समाजी) वे लोग à¤à¥€ इस विचार (आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾) को जानकर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ नहीं हà¥à¤, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उन लोगों को à¤à¥€ यह निशà¥à¤šà¤¯ था कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के चाहने वालों में से अधिकतर लोग हमारी समाज में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ होंगे।’
इसके बाद पं. लेखराम जी ने ‘सचà¥à¤šà¥‡ धरà¥à¤® जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥à¤“ं का निशà¥à¤šà¤¯ अधिक दृढ़ हà¥à¤†’ शीरà¥à¤·à¤• से लिखा है कि इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जब कà¥à¤› विशेष धरà¥à¤®à¤œà¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥à¤“ं को इन दोनों (पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के लोगों अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ नवीन वेदानà¥à¤¤à¥€ पौराणिक और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤¸à¤®à¤¾à¤œà¥€ व पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾-समाजी) का हारà¥à¤¦à¤¿à¤• अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ विदित हà¥à¤† कि वे लोग ऊपर से तो सतà¥à¤¯à¤¶à¥‹à¤§à¤• हैं और (हृदय व आनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤• रूप से) अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ हैं, तब ‘आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ’ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने की उनकी इचà¥à¤›à¤¾ बहà¥à¤¤ बढ़ गई और अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ समाज सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने पर वह उदà¥à¤¯à¤¤ हो गà¤à¥¤ जिसका परिणाम यह हà¥à¤† कि संवतॠ1931 (सनॠ1874) के महानà¥à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ ने उस महापंडित (दयाननà¥à¤¦ जी) को अपना विचार समà¤à¤¾ कर उनके सामने 60 सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° करवाकर ‘आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ’ चलाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने हिनà¥à¤¦à¥€à¤à¤¾à¤·à¤¾ में उसके नियम à¤à¥€ रच दिठऔर उसमें समय-समय पर धरà¥à¤®à¥‹à¤ªà¥‡à¤¦à¥‡à¤¶ करने का उतà¥à¤¤à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤µ अपने ऊपर लिया। इस पर à¤à¥€ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ न हो सकी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दूसरे विघà¥à¤¨ आ गये। (आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के धरà¥à¤®à¤œà¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥) कà¥à¤› सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ पर तो बिरादरी की ओर से ऊपर से बहà¥à¤¤ से दबाव डाले गठऔर कà¥à¤› ने इस आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ का सà¤à¤¾à¤¸à¤¦à¥ बनने को धनाढà¥à¤¯à¤¤à¤¾ की शान के विरà¥à¤¦à¥à¤§ समà¤à¤¾ और कà¥à¤› सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ और समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से इस बात (आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कराने व उसका सà¤à¤¾à¤¸à¤¦ बनने) को लेकर à¤à¤—ड़े आरमà¥à¤ हो गà¤à¥¤ अनà¥à¤¤ में यह à¤à¥€ हà¥à¤† कि उस महापणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ (दयाननà¥à¤¦) पर लोग नाना पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के कपोल-कलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ दोष à¤à¥€ लगाने लगे कि वह ईसाई है, अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ का नौकर, मà¥à¤²à¥‡à¤šà¥à¤› है आदि आदि (इस अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¯ से लगाने लगे कि जिससे सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ दयाननà¥à¤¦ जी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनकी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ उठजाà¤)। (परिणाम यह हà¥à¤† कि इस समय आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का कारà¥à¤¯ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं हो सका)।
सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤° 29 जनवरी, सनॠ1875 को दूसरी बार अहमदाबाद से मà¥à¤®à¥à¤¬à¤ˆ पधारे। बमà¥à¤¬à¤ˆ में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के दूसरी बार आने पर आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ-सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का विचार पà¥à¤¨à¤ƒ अंकà¥à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी पिछली पà¥à¤°à¤¥à¤® बमà¥à¤¬à¤ˆ यातà¥à¤°à¤¾ के बाद गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤œ की ओर चले जाने से आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का जो विचार बमà¥à¤¬à¤ˆ वालों के मन में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† था, वह ढीला हो गया था परनà¥à¤¤à¥ अब सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी के पà¥à¤¨à¤ƒ आ जाने से फिर बढ़ने लगा और अनà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ यहां तक बढ़ा कि कà¥à¤› सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ ने दृढ़ संकलà¥à¤ª कर लिया कि चाहे कà¥à¤› à¤à¥€ हो, बिना (आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ) सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किठहम नहीं रहेंगे। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ से लौटकर बमà¥à¤¬à¤ˆ आते ही फरवरी मास, सनॠ1875 में गिरगांव के मोहलà¥à¤²à¥‡ में à¤à¤• सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• सà¤à¤¾ करके राव बहादà¥à¤° दादू बा पांडà¥à¤°à¤‚ग जी की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ में नियमों पर विचार करने के लिठà¤à¤• उपसà¤à¤¾ नियत की गईं। परनà¥à¤¤à¥ उस सà¤à¤¾ में à¤à¥€ कई à¤à¤• लोगों ने अपना यह विचार पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ किया कि अà¤à¥€ समाज-सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨ न होना चाहिये। à¤à¤¸à¤¾ अनà¥à¤¤à¤°à¤‚ग विचार होने से वह पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ à¤à¥€ वैसा ही (निषà¥à¤«à¤²) रहा।
उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ विवरण को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करने के बाद पं. लेखराम जी ‘बमà¥à¤¬à¤ˆ में पà¥à¤°à¤¥à¤® आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾’ शीरà¥à¤·à¤• से आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ संबंधी घटनाओं का विवरण पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हà¥à¤ लिखते हैं कि ‘और अनà¥à¤¤ में जब कई à¤à¤• à¤à¤¦à¥à¤° पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ हà¥à¤† कि अब समाज की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ होती ही नहीं, तब कà¥à¤› धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾à¤“ं ने मिलकर राजमानà¥à¤¯ राजà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ पानाचनà¥à¤¦ आननà¥à¤¦ जी पारेख को नियत किठहà¥à¤ नियमों पर विचारने और उनको ठीक करने का काम सौंप दिया। फिर जब ठीक किठहà¥à¤ नियम सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर लिठतो उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ कà¥à¤› à¤à¤¦à¥à¤° पà¥à¤°à¥à¤·, जो आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करना चाहते थे और नियमों को बहà¥à¤¤ पसनà¥à¤¦ करते थे, लोकà¤à¤¯ की चिनà¥à¤¤à¤¾ न करके, आगे धरà¥à¤® के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में आये और चैतà¥à¤° सà¥à¤¦à¤¿ 5 शनिवार, संवतॠ1932, तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° 10 अपà¥à¤°à¥ˆà¤², सनॠ1875 व 3 रवीउलॠअवà¥à¤µà¤², सनॠ1292 हिजरी व संवतॠ1797, शालिवाहन व सनॠ1283, फसà¥à¤²à¥€ व माहे खà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¦, सनॠ1284 फारसी व चैत 29, संकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿ संवतॠ1932 को शाम के समय, मोहलà¥à¤²à¤¾ गिरगांव में डाकà¥à¤Ÿà¤° मानक जी के बागीचे में, शà¥à¤°à¥€ गिरधरलाल दयालदास कोठारी बी.à¤., à¤à¤².à¤à¤².बी. की पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤¤à¤¾ में à¤à¤• सारà¥à¤µà¤œà¤¨à¤¿à¤• सà¤à¤¾ की गई और उसमें यह नियम सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¥‡ गये और सरà¥à¤µà¤¸à¤®à¥à¤®à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ हà¥à¤ और उसी दिन से आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हो गयी।’
उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ लेख देने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के 28 नियमों का कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ उलà¥à¤²à¥‡à¤– है व उससे पूरà¥à¤µ संवतॠ1931 चैतà¥à¤° सà¥à¤¦à¤¿ 5, शनिवार को आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ बमà¥à¤¬à¤ˆ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हà¥à¤†, पंकà¥à¤¤à¤¿ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ है। इससे à¤à¥€ पूरà¥à¤µ मोटे अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ में लिखा है ‘पà¥à¤°à¤¥à¤® आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के नियम।’ 28 नियमों के बाद बताया गया है कि फिर अधिकारी नियत किये गà¤à¥¤ ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शनिवार सायंकाल को आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के अधिवेशन होने लगे परनà¥à¤¤à¥ कà¥à¤› मास के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ शनिवार का दिन सामाजिक पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤•à¥‚ल न होने से रविवार का दिन रखा गया जो अब तक है। इस विवरण में यह à¤à¥€ लिखा है कि सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ समाज सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने और à¤à¤• दो सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ चलाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ फिर अहमदाबाद को चले गठऔर वहां जाकर बड़ी पà¥à¤°à¤¬à¤² यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£à¤®à¤¤ का खंडन आरमà¥à¤ किया।
उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में हमने पà¥à¤°à¤¥à¤® आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की पूरी पृषà¥à¤ à¤à¥‚मि व सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ से संबंधित पं. लेखराम जी के पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• लेखों सहित सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• तिथि का उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया है। अब यह देखना है कि आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ में सबसे अधिक सकà¥à¤°à¤¿à¤¯ व पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤• लोग कौन रहे थे। पं. देवेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ मà¥à¤–ोपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ जी ने अपने ऋषि जीवन चरित में लिखा है कि ऋषि जब दूसरी बार बमà¥à¤¬à¤ˆ आये तो à¤à¤•à¥à¤¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के मन में आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करने की इचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤¨à¤ƒ जागà¥à¤°à¤¤à¥ हà¥à¤ˆ और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने à¤à¥€ उनसे यह (आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का) पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤µ किया। अनà¥à¤¯ सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के अतिरकà¥à¤¤à¤¿ लछमनदास सेमजी और राजकृषà¥à¤£ महाराज इस विषय में अधिक उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ दिखाने लगे। राजकृषà¥à¤£ महाराज ने आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ के नियम बनाने की इचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ की तो सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने कहा कि नियम हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बनाà¤à¤‚गे और à¤à¤• नियमावली बना दी। राजकृषà¥à¤£ महाराज ने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ को कहा कि नियमों में जीव-बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के à¤à¤•à¤¤à¥à¤µ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ का समावेश होना चाहिà¤, पीछे छोड़ देंगे। à¤à¤¸à¤¾ करने से हम अनेक लोगों को आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ कर सकेंगे। राजकृषà¥à¤£ महाराज की इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ विरà¥à¤¦à¥à¤§ बात को सà¥à¤¨à¤•à¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने कहा कि असतà¥à¤¯ पर आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ को कदापि सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ न करà¥à¤‚गा। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ के इस सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ उतà¥à¤¤à¤° से राजकृषà¥à¤£ महाराज नाराज हो गये और आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ से पृथक हो गये। पं. देवेनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¨à¤¾à¤¥ मà¥à¤–ोपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ जी ने आरà¥à¤¯à¤¸à¤®à¤¾à¤œ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ में सहयोगी कà¥à¤› पà¥à¤°à¤®à¥à¤– लोगों के नाम देते हà¥à¤ लिखा है कि सेठमथà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¾à¤¸ लौजी, सेवकलाल, करसनदास, गिरिधारीलाल दयालदास कोठारी बी.à¤. à¤à¤².-à¤à¤².बी. पà¥à¤°à¤à¥ƒà¤¤à¤¿
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